पहले जैसा प्रेम हमेशा कोनीhttps://youtu.be/dsPmZBownsU रेवे।
Rajasthan Music
Rajasthan music
Saturday, May 2, 2020
Saturday, October 14, 2017
Tuesday, September 12, 2017
एप्पल शेयर आईफोन एक्स लॉन्च के आगे लाभ
सोमवार को एप्पल (नास्डैक: एएपीएल) का शेयर करीब 2% ज्यादा बंद हुआ, मंगलवार को बाजार में पूर्व में 1% की बढ़ोतरी हुई और 162.85 डॉलर तक पहुंच गई।
आईटी एक्स के नाम से होने वाले अपने नए हाई-एंड स्मार्टफोन का खुलासा करने वाली तकनीक की दिग्गज कंपनी स्पॉटलाइट में होगी। यह 1:00 पूर्वाह्न ईटी (1700 जीएमटी) के लिए आयोजित नवीनतम उत्पाद लॉन्च कार्यक्रम में होगा।
एप्पल के नए एपल पार्क "अंतरिक्ष यान" कैप्चरिनो, कैलिफ़ में परिसर में स्टीव जॉब्स थिएटर में भड़का हुआ कार्यक्रम होगा।
रिपोर्ट के मुताबिक, नया फोन, जिसकी कीमत 1,200 डॉलर तक हो सकती है, में अमीर रंग और चेहरे की पहचान के साथ किनारे से बढ़त वाले प्रदर्शन की सुविधा होगी।
दो अन्य मॉडल, जिसे आईफोन 8 और आईफोन 8 प्लस कहा जाने की संभावना है, को भी अनावरण किया जा सकता है।
अपने नवीनतम स्मार्टफोन के अतिरिक्त, एप्पल से कई उत्पादों की घोषणा की जा सकती है, जैसे होमपॉड, साथ ही साथ एप्पल वॉच और एक उच्च-परिभाषा वाले एप्पल टीवी के लिए एक बड़ा अपग्रेड।
- ऐप्पल इस वर्ष अब तक के बाजार में सबसे अच्छे प्रदर्शन वाले नामों में से एक रहा है। 2017 में कंपनी के शेयरों में करीब 40% बढ़ोतरी हुई है, कंपनी जल्द ही पहली सार्वजनिक कंपनी बन जाएगी 1 खरब डॉलर के लायक है।
Thursday, August 31, 2017
Tuesday, August 22, 2017
Maharana Amar Singh Story
#वीरो_के_वीर - महाराणा अमर सिंह
इन लेख के शुरू होते ही पहले स्पष्ठ कर देना चाहता हूं, की महाराणा अमरसिंह ने मुगलो से , जहांगीर से या किसी भी अन्य मुसलमान से कोई संधि नही की , अगर आपने यह इतिहास में पढ़ा है , तो यह मिथ्या बात है, कोरी बकवास है ।
किसी भी शाशक के इतिहास को जानने से पहले उस शाशक के पूर्व ओर बाद कि स्तिथि दोनो का पता होना चाहिए, तभी सही मायने में सही - सही आंकलन हम कर सकते है । भारत के मुख्य इतिहासकार, चाहे कर्नल टॉड हो या हीरानंद ओझा, उन्होंने मुगल पोथियां देखकर ही हिन्दुओ का इतिहास लिखा है, इन लोगो के इतिहास में कोई सत्यता नही ।
अमरसिंह के बचपन का थोड़ा समय भले ही कष्ठ में बिता हो लेकिन उसके बाद उन्होंने कभी दुख नही देखा, महाराणा प्रताप ने अकबर को हराकर खुद को बहुत सुदृढ़ कर लिया था । राणा अमरसिंहः की अभी इतिहास शुरू शुरू मव विलासी राजा बताते है, जो कि सच भी है । विलासी कोई तभी हो पाता है, जब उसका परिवार संघर्ष ना कर रहा हो, ओर सम्पन्न हो, तो यह तो यहां साबित होता है, की महाराणा प्रताप एक विशाल भूखण्ड के स्वामी हो गए थे । लेकिन अमर सिंहः के बाद कि स्तिथि देखे, तो मेवाड़ की स्तिथि बहुत ही दयनीय थी । अब विचार करने वाली बात यह है, की अगर अमरसिंहः संधि कर लेते, तो स्तिथि दयनीय क्यो होती ?
आपको यह मानकर चलना होगा, की जिस भी राजवंश ने इस्लाम कबूल नही किया, उसने केवल मुसलमानो से युद्ध ही किया । उनकी कोई संधि मुसलमानो से नही रही, चाहे वह जोधपुर के मानसिंहः हो, या मेवाड़ के अमरसिंहः
#अमरसिंहः_की_विजय_गाथा
महाराणा प्रताप के 17 पुत्रों में सबसे ज्येष्ठ महाराणा अमर सिंह 38 साल की उम्र में 23 जनवरी 1597 को मेवाड़ के सिंहासन पर विराजमान हुए । जब तक महाराणा प्रताप खुद जीवित थे, उन्हें राजपाठ की कोई चिंता नही थी । राजपरिवार में कोई क्लेश भी नही था, की राजगद्दी के लिए षड्यंत्र की चिंता हो । महाराणा प्रताप के स्वर्ग सिधारने के बाद अमर-महल बनाकर अमरसिंहः अपना शाशन शांति से चला रहे थे । यही लापरवाही अमरसिंहः के लिए भारी भी पड़ सकती थी, क्यो की विजयादशमी के दिन अचानक जहांगीर ने उनपर आक्रमण कर दिया । मुगल सेना चारो ओर से मेवाड़ के घेराव कर रही थी ।
त्योहार के दिन जब एक विशाल सेना राजपूताने की दहलीज पर आकर खड़ी हो गयी, तो अमरसिंह घबरा गए, उनकी घबराहट देखकर सामन्तो ओट सरदारों को बड़ा असंतोष हुआ ।
अमरसिंहः के मुख का भय देखकर सम्बुक का एक सरदार क्रोध से तिलमिला गया, उसने अमरसिंहः से कहा -
" आप जानते भी है आप कौन है ? आप वीरो के वीर सिसोदिया वंशी महाराणा प्रताप के ज्येष्ठ पुत्र है । आपने तो अपने पिता का संघर्ष अपनी आंखों से देखा है । अपने वंश, सनातन ओर अपनी आन-बान - शान के लिए ना जाने कितने राजपूतो ने बलिदान दिए है। मल्लेछ सिर पर आ बेठे है, ओर आप शांत बेठे है।
अमर सिंहः से इस बात का कोई जवाब नही दिया, वे शांत रहे ।
अमरसिंहः की चुप्पी से सम्बुक सरदार का पारा दुगना चढ़ गया, उसने सभी सामन्त सरदारों से कहा, युद्ध की तैयारी करो साथियों .... मेवाड़ के इस कलंक की रक्षा करने हमे रणभूमि पर भी जाना है "
राणा के यह वचन सुनकर अमरसिंहः के आंखों में बिजली चमक उठी ।उन्होंने तुरंत अपनी म्यान से तलवार निकाली और घोषणा कर दी, की एक भी मल्लेछ वापस जीवित ना लौट पाए ।
मुगल सेना देवीर नाम के स्थान पर अपना पड़ाव डाले हुए थी ।
"विजयादशमी के मौके को,
राणा ने तलवारें खींची |
चढ़ दिवेर की घाटी को,
मुगलों के रक्त से सींची ||"
विजयादशमी का दिन था, राजपूत योद्धाओं ने शस्त्र पूजन कर दिवेर घाटी के पूर्व सिरे पर जहां मुगल सेना पड़ाव डाले पड़ी थी, वहीं हमला कर दिया। दिवेर की सामरिक स्थिति का आंकलन कर प्रताप ने शाहबाज खान द्वारा हस्तगत मेवाड़ की मुक्ति का अभियान यहां से प्रारंभ किया। इस युद्ध में अमरसिंह, भामाशाह, चुंडावत, शक्तावत, सोलंकी, पडिहार, रावत आदि राजपूतों तथा भील सैनिकों से युक्त पराक्रम सेना के साथ दिवेर पर आक्रमण किया। मेवाड़ी सेना के आने की सूचना मिलते ही सुल्तान खान युद्ध के लिए सामने आया तथा उसने आस पास के मुगल थानों में भी खबर भेज दी। वहां 14 मुगल सरदार दिवेर युद्ध में मुगलों की सहायता के लिए पहुंचे। मेवाड़ तथा मुगल सेनाओं के बीच भयंकर युद्ध हुआ। सुल्तान खान हाथी पर बैठा अपनी सेना का संचालन कर रहा था। अमरसिंहः के एक सैनिक सोलंकी भृत्य पडिहार ने तलवार के वार से हाथी के अगले पैर काट डाले तथा प्रताप ने हाथी के मस्तक को भाले से फोड़ दिया। हाथी गिर पड़ा एवं सुल्तान खान कोहाथी छोडऩा पड़ा और वह घोड़े पर बैठकर लडऩे लगा। उसका सामना अमरसिंह से हुआ। अमरसिंह ने भाले से इतना जोरदार वार किया कि एक ही वार में सुल्तान खान के, उसके घोड़े के तथा उसके टोप बख्तर को एक साथ भाले में पिरो दिया। इसके बाद सभी थाने व चौकियों से बचे खुचे मुगल पीठ दिखाकर भाग खड़े हुए।
इस पराजय से पूरी दिल्ली हिल गयी । युद्ध के एक वर्ष पश्चात जहांगीर की मति दुबारा भर्स्ट हो गयी, ओर अब्दुल्ला को सेनापति बनाकर राणा अमरसिंहः से युद्ध करने भेज दिया । परिणाम वही रहा, सारे मुसलमानो की वहीं कब्र बना दी गयी ।
अब राजपूतो को जितना जहांगीर को असंभव लगने लगा । राजपूतो का यह आक्रमण पिछले आक्रमण से भी ज़्यादा भयंकर था । इसलिए एक राजपूत सागर सिंहः को उन्होंने अमरसिंहः के विरुद्ध सेनापति बनाकर भेजा । लगातार 7 वर्ष तक सागरसिंह प्रयास करता रहा । लेकिन हर बार पूरी सेना खत्म कर दी जाती, ओर सागरसिंहः को जीवित छोड़ दिया जाता, ताकि वह मुगल दरबार मे अपनी हार का आंखों देखा हाल सुना सके । बार बार पराजय से शर्मिंदा सागरसिंहः ने खुद अपनी तलवार से ही अपना गला काट लिया ।
जहांगीर अव दुबारा मेवाड़ पर चढ़ाई करने की तैयारी करने लगा । इस बार मेवाड़ की सेना आपस मे ही लड़ने लगी । लड़ाई थी, पहले सिर कौन कटाये, एक दल कहता पहले में, तो दूसरा दल कहता पहले में ।
राणा अमरसिंहः अब किसका पक्ष ले ? अतः उन्होंने बीच का रास्ता यह निकाला कि आपस मे प्रतियोगिता कर विजयी हो जाओ , वही हरावल सेना होगी । इस हरावल सेना का तातपर्य था, सेना की अग्रिम पंक्ति ने जाकर खड़ा होना, ओर आगे खुद बढ़कर युद्ध करना, पहले हर बार चूंडावत इस सेना का हिस्सा हुआ करते थे, इस बार शक्तावत ने दावा ठोक दिया । प्रतियोगिता थी, दुर्ग का द्वार तोड़कर जिस भी सेना का सैनिक पहले प्रवेश करेगा, वही हरावल सेना कहलाएगी ।
प्रतियोगिता आरम्भ हई, शक्तावत ने हाथी की ठोकरों से दुर्ग को तुड़वाने की सोची, लेकिन द्वार पर तेज भाले लगे होने के कारण हांथी द्वार पर प्रहार नही कर पा रहा था, तब शक्तावत सरदार खुद जाकर द्वार से चिपक गया, ओर कहा, अब हाथी से मेरे देह पर वार करवाओ, इसे भाले नही चुभेंगे, गेट टूट जाएगा । वैसा ही हुआ, हाथी गेट टूटने वाला ही था, की चूंडावत सरदार ने पराजय निकट देख अपने साथियों से कहा, मेरा मस्तक काट कर दुर्ग के भीतर फेंक दो । वही हुआ, गेट भी टूटा, लेकिन शक्तावत सेना दुर्ग में प्रवेश करती, उससे पहले ही चूंडावत सरदार का सिर दुर्ग के अंदर था । चूंडावत हरावल सेना को युद्ध में आगे रहने का अवसर मिला, लेकिन इस प्रतियोगिता में जीता कौन, यह बयान करना किसी इतिहासकार के बस के बात नही ....
इन्ही राजपूतो को जहांगीर की कायर सेना हराना चाहती थी । लगातार हारने के बाद भी जहांगीर को कल ना आई, ओर एक आक्रमण अपने पुत्र परवेज के नेतृत्व में मेवाड़ पर करवा दिया । इस युद्ध में फिर राजपूतो की तलवारे चमकी, ओर कुछ ही समय मे मुसलमान सैनिक नामशेष हो गए, परवेज खुद अपनी जान बड़ी मुश्किल से बचा पाया ।
एक बार फिर लुटेरी सेना का गठन हुआ, परवेज के दुस्ट पुत्र महावत खान जो कि डकैती के काम मे पीएचडी था, उसके नेतृत्व में सेना भेजी गई, वह भी बेचारा अपनी सेना के साथ मारा गया ।
जहांगीर ने अंतिम बार खुर्रम को भेजा , इस दुस्ट ने सेना से युद्ध ना करते हुए, निहत्थे ग्रामीणों पर धावा बोल दिया । बहुत पशुधन , सोने चांदी, ओर हिन्दू स्त्रियों को लेकर वह फरार हो गया । स्त्रियों को लेजाकर जहांगीर को पेश की गई, जो कि इन्हें देखते ही बावला हो उठा, सिक्के फेंक के इतिहासकारों से लिखवा किया, की लिखो, हम विजयी हुए ।
इस विजय के झूठ का भंडाफोड़ तब होता है । जब यह पढ़ने को मिले की " कर्णसिंह ( अमरसिंहः का पुत्र ) दिल्ली आया, बादशाह ने उसे बहुत धन दिया
क्या यह लुटेरे मुसलमान अमरसिंहः को धन दे सकते थे ? नही अमरसिंहः के पुत्र कर्ण से दिल्ली पर चढ़ाई कर अपना सारा धन, स्त्रिया वापस छुड़वा ली ।
महाराणा अमरसिंहः ने लगातार 17 युद्ध लड़े, एक भी नही हारे, लेकिन हमारे इतिहास ने इतना भी प्रयास नही किया, की इन्हें उचित सम्मान दे पाते ।
इन लेख के शुरू होते ही पहले स्पष्ठ कर देना चाहता हूं, की महाराणा अमरसिंह ने मुगलो से , जहांगीर से या किसी भी अन्य मुसलमान से कोई संधि नही की , अगर आपने यह इतिहास में पढ़ा है , तो यह मिथ्या बात है, कोरी बकवास है ।
किसी भी शाशक के इतिहास को जानने से पहले उस शाशक के पूर्व ओर बाद कि स्तिथि दोनो का पता होना चाहिए, तभी सही मायने में सही - सही आंकलन हम कर सकते है । भारत के मुख्य इतिहासकार, चाहे कर्नल टॉड हो या हीरानंद ओझा, उन्होंने मुगल पोथियां देखकर ही हिन्दुओ का इतिहास लिखा है, इन लोगो के इतिहास में कोई सत्यता नही ।
अमरसिंह के बचपन का थोड़ा समय भले ही कष्ठ में बिता हो लेकिन उसके बाद उन्होंने कभी दुख नही देखा, महाराणा प्रताप ने अकबर को हराकर खुद को बहुत सुदृढ़ कर लिया था । राणा अमरसिंहः की अभी इतिहास शुरू शुरू मव विलासी राजा बताते है, जो कि सच भी है । विलासी कोई तभी हो पाता है, जब उसका परिवार संघर्ष ना कर रहा हो, ओर सम्पन्न हो, तो यह तो यहां साबित होता है, की महाराणा प्रताप एक विशाल भूखण्ड के स्वामी हो गए थे । लेकिन अमर सिंहः के बाद कि स्तिथि देखे, तो मेवाड़ की स्तिथि बहुत ही दयनीय थी । अब विचार करने वाली बात यह है, की अगर अमरसिंहः संधि कर लेते, तो स्तिथि दयनीय क्यो होती ?
आपको यह मानकर चलना होगा, की जिस भी राजवंश ने इस्लाम कबूल नही किया, उसने केवल मुसलमानो से युद्ध ही किया । उनकी कोई संधि मुसलमानो से नही रही, चाहे वह जोधपुर के मानसिंहः हो, या मेवाड़ के अमरसिंहः
#अमरसिंहः_की_विजय_गाथा
महाराणा प्रताप के 17 पुत्रों में सबसे ज्येष्ठ महाराणा अमर सिंह 38 साल की उम्र में 23 जनवरी 1597 को मेवाड़ के सिंहासन पर विराजमान हुए । जब तक महाराणा प्रताप खुद जीवित थे, उन्हें राजपाठ की कोई चिंता नही थी । राजपरिवार में कोई क्लेश भी नही था, की राजगद्दी के लिए षड्यंत्र की चिंता हो । महाराणा प्रताप के स्वर्ग सिधारने के बाद अमर-महल बनाकर अमरसिंहः अपना शाशन शांति से चला रहे थे । यही लापरवाही अमरसिंहः के लिए भारी भी पड़ सकती थी, क्यो की विजयादशमी के दिन अचानक जहांगीर ने उनपर आक्रमण कर दिया । मुगल सेना चारो ओर से मेवाड़ के घेराव कर रही थी ।
त्योहार के दिन जब एक विशाल सेना राजपूताने की दहलीज पर आकर खड़ी हो गयी, तो अमरसिंह घबरा गए, उनकी घबराहट देखकर सामन्तो ओट सरदारों को बड़ा असंतोष हुआ ।
अमरसिंहः के मुख का भय देखकर सम्बुक का एक सरदार क्रोध से तिलमिला गया, उसने अमरसिंहः से कहा -
" आप जानते भी है आप कौन है ? आप वीरो के वीर सिसोदिया वंशी महाराणा प्रताप के ज्येष्ठ पुत्र है । आपने तो अपने पिता का संघर्ष अपनी आंखों से देखा है । अपने वंश, सनातन ओर अपनी आन-बान - शान के लिए ना जाने कितने राजपूतो ने बलिदान दिए है। मल्लेछ सिर पर आ बेठे है, ओर आप शांत बेठे है।
अमर सिंहः से इस बात का कोई जवाब नही दिया, वे शांत रहे ।
अमरसिंहः की चुप्पी से सम्बुक सरदार का पारा दुगना चढ़ गया, उसने सभी सामन्त सरदारों से कहा, युद्ध की तैयारी करो साथियों .... मेवाड़ के इस कलंक की रक्षा करने हमे रणभूमि पर भी जाना है "
राणा के यह वचन सुनकर अमरसिंहः के आंखों में बिजली चमक उठी ।उन्होंने तुरंत अपनी म्यान से तलवार निकाली और घोषणा कर दी, की एक भी मल्लेछ वापस जीवित ना लौट पाए ।
मुगल सेना देवीर नाम के स्थान पर अपना पड़ाव डाले हुए थी ।
"विजयादशमी के मौके को,
राणा ने तलवारें खींची |
चढ़ दिवेर की घाटी को,
मुगलों के रक्त से सींची ||"
विजयादशमी का दिन था, राजपूत योद्धाओं ने शस्त्र पूजन कर दिवेर घाटी के पूर्व सिरे पर जहां मुगल सेना पड़ाव डाले पड़ी थी, वहीं हमला कर दिया। दिवेर की सामरिक स्थिति का आंकलन कर प्रताप ने शाहबाज खान द्वारा हस्तगत मेवाड़ की मुक्ति का अभियान यहां से प्रारंभ किया। इस युद्ध में अमरसिंह, भामाशाह, चुंडावत, शक्तावत, सोलंकी, पडिहार, रावत आदि राजपूतों तथा भील सैनिकों से युक्त पराक्रम सेना के साथ दिवेर पर आक्रमण किया। मेवाड़ी सेना के आने की सूचना मिलते ही सुल्तान खान युद्ध के लिए सामने आया तथा उसने आस पास के मुगल थानों में भी खबर भेज दी। वहां 14 मुगल सरदार दिवेर युद्ध में मुगलों की सहायता के लिए पहुंचे। मेवाड़ तथा मुगल सेनाओं के बीच भयंकर युद्ध हुआ। सुल्तान खान हाथी पर बैठा अपनी सेना का संचालन कर रहा था। अमरसिंहः के एक सैनिक सोलंकी भृत्य पडिहार ने तलवार के वार से हाथी के अगले पैर काट डाले तथा प्रताप ने हाथी के मस्तक को भाले से फोड़ दिया। हाथी गिर पड़ा एवं सुल्तान खान कोहाथी छोडऩा पड़ा और वह घोड़े पर बैठकर लडऩे लगा। उसका सामना अमरसिंह से हुआ। अमरसिंह ने भाले से इतना जोरदार वार किया कि एक ही वार में सुल्तान खान के, उसके घोड़े के तथा उसके टोप बख्तर को एक साथ भाले में पिरो दिया। इसके बाद सभी थाने व चौकियों से बचे खुचे मुगल पीठ दिखाकर भाग खड़े हुए।
इस पराजय से पूरी दिल्ली हिल गयी । युद्ध के एक वर्ष पश्चात जहांगीर की मति दुबारा भर्स्ट हो गयी, ओर अब्दुल्ला को सेनापति बनाकर राणा अमरसिंहः से युद्ध करने भेज दिया । परिणाम वही रहा, सारे मुसलमानो की वहीं कब्र बना दी गयी ।
अब राजपूतो को जितना जहांगीर को असंभव लगने लगा । राजपूतो का यह आक्रमण पिछले आक्रमण से भी ज़्यादा भयंकर था । इसलिए एक राजपूत सागर सिंहः को उन्होंने अमरसिंहः के विरुद्ध सेनापति बनाकर भेजा । लगातार 7 वर्ष तक सागरसिंह प्रयास करता रहा । लेकिन हर बार पूरी सेना खत्म कर दी जाती, ओर सागरसिंहः को जीवित छोड़ दिया जाता, ताकि वह मुगल दरबार मे अपनी हार का आंखों देखा हाल सुना सके । बार बार पराजय से शर्मिंदा सागरसिंहः ने खुद अपनी तलवार से ही अपना गला काट लिया ।
जहांगीर अव दुबारा मेवाड़ पर चढ़ाई करने की तैयारी करने लगा । इस बार मेवाड़ की सेना आपस मे ही लड़ने लगी । लड़ाई थी, पहले सिर कौन कटाये, एक दल कहता पहले में, तो दूसरा दल कहता पहले में ।
राणा अमरसिंहः अब किसका पक्ष ले ? अतः उन्होंने बीच का रास्ता यह निकाला कि आपस मे प्रतियोगिता कर विजयी हो जाओ , वही हरावल सेना होगी । इस हरावल सेना का तातपर्य था, सेना की अग्रिम पंक्ति ने जाकर खड़ा होना, ओर आगे खुद बढ़कर युद्ध करना, पहले हर बार चूंडावत इस सेना का हिस्सा हुआ करते थे, इस बार शक्तावत ने दावा ठोक दिया । प्रतियोगिता थी, दुर्ग का द्वार तोड़कर जिस भी सेना का सैनिक पहले प्रवेश करेगा, वही हरावल सेना कहलाएगी ।
प्रतियोगिता आरम्भ हई, शक्तावत ने हाथी की ठोकरों से दुर्ग को तुड़वाने की सोची, लेकिन द्वार पर तेज भाले लगे होने के कारण हांथी द्वार पर प्रहार नही कर पा रहा था, तब शक्तावत सरदार खुद जाकर द्वार से चिपक गया, ओर कहा, अब हाथी से मेरे देह पर वार करवाओ, इसे भाले नही चुभेंगे, गेट टूट जाएगा । वैसा ही हुआ, हाथी गेट टूटने वाला ही था, की चूंडावत सरदार ने पराजय निकट देख अपने साथियों से कहा, मेरा मस्तक काट कर दुर्ग के भीतर फेंक दो । वही हुआ, गेट भी टूटा, लेकिन शक्तावत सेना दुर्ग में प्रवेश करती, उससे पहले ही चूंडावत सरदार का सिर दुर्ग के अंदर था । चूंडावत हरावल सेना को युद्ध में आगे रहने का अवसर मिला, लेकिन इस प्रतियोगिता में जीता कौन, यह बयान करना किसी इतिहासकार के बस के बात नही ....
इन्ही राजपूतो को जहांगीर की कायर सेना हराना चाहती थी । लगातार हारने के बाद भी जहांगीर को कल ना आई, ओर एक आक्रमण अपने पुत्र परवेज के नेतृत्व में मेवाड़ पर करवा दिया । इस युद्ध में फिर राजपूतो की तलवारे चमकी, ओर कुछ ही समय मे मुसलमान सैनिक नामशेष हो गए, परवेज खुद अपनी जान बड़ी मुश्किल से बचा पाया ।
एक बार फिर लुटेरी सेना का गठन हुआ, परवेज के दुस्ट पुत्र महावत खान जो कि डकैती के काम मे पीएचडी था, उसके नेतृत्व में सेना भेजी गई, वह भी बेचारा अपनी सेना के साथ मारा गया ।
जहांगीर ने अंतिम बार खुर्रम को भेजा , इस दुस्ट ने सेना से युद्ध ना करते हुए, निहत्थे ग्रामीणों पर धावा बोल दिया । बहुत पशुधन , सोने चांदी, ओर हिन्दू स्त्रियों को लेकर वह फरार हो गया । स्त्रियों को लेजाकर जहांगीर को पेश की गई, जो कि इन्हें देखते ही बावला हो उठा, सिक्के फेंक के इतिहासकारों से लिखवा किया, की लिखो, हम विजयी हुए ।
इस विजय के झूठ का भंडाफोड़ तब होता है । जब यह पढ़ने को मिले की " कर्णसिंह ( अमरसिंहः का पुत्र ) दिल्ली आया, बादशाह ने उसे बहुत धन दिया
क्या यह लुटेरे मुसलमान अमरसिंहः को धन दे सकते थे ? नही अमरसिंहः के पुत्र कर्ण से दिल्ली पर चढ़ाई कर अपना सारा धन, स्त्रिया वापस छुड़वा ली ।
महाराणा अमरसिंहः ने लगातार 17 युद्ध लड़े, एक भी नही हारे, लेकिन हमारे इतिहास ने इतना भी प्रयास नही किया, की इन्हें उचित सम्मान दे पाते ।
Monday, August 21, 2017
Rajputana Boys & Girls Beautiful Talvar Dance
Rajasthani beautiful program rajputana style me
Rajputana boys& girls talvar dance
जब हम घोङे पर सवार होते तो,योध्दा कहलाते है,
जब हम किसी की जान बचाते है तो,श्रत्रिय कहलाते है,
जब हम किसी को वचन देते है तो “राजपुत” कहलाते है !!
Jai jai rajputana
दारू की जन्म गाथा 🍷🍻
https://youtu.be/kq5zAQId59Q
दारु की जन्म गाथा"🍷🥃🥃🍺
दुनिया में पहली बार दारू बनाने की भट्ठी 🍷एक बरगद के पेड़🌳 के नीचे लगी थी |
🌳
पेड़ पर एक कोयल और एक तोता रहते थे |
पेड़ के नीचे एक शेर और एक सूअर अक्सर आराम करने आते थे |
https://youtu.be/kq5zAQId59Q
पहले ही दिन दारू बनाते समय भट्ठी से आग लग गयी |
आग में कोयल, तोता, शेर और सूअर जल कर मर गए।
और चारों की आत्मा सदा के लिए दारू में प्रवेश कर गयी |
अब नतीजा ये हुआ कि,,
-
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दो पैग के बाद कोयल की आत्मा का असर और मीठे बोल चालू |
तीसरे पैग के बाद तोते की तरह एक ही बात की टें टें टें |
चौथे पैग के बाद शेर की आत्मा का असर
और फिर मुहल्ले का दादा बन गए |
और अगले पैग के बाद सूअर की आत्मा जग जाती है
और फिर तो आप जानते ही होंगे
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_
नाली मे .............
😂😂😂😂 ये तो पक्का नया है अब तक किसी ने नही भेजा होगा
https://youtu.be/aJpO82L0uEQ
Sunday, August 20, 2017
Maharana pratap & chatak hours story
पूरा नाम – महाराणा प्रताप
जन्म – 9 मे, 1540
जन्मस्थान – कुम्भलगढ़ दुर्ग
पिता – राणा उदय सिंह
माता – महाराणी जयवंता कँवर
विवाह Wives of Maharana Pratap – उन्होंने 11 शादियाँ की थी – महारानी अजब्धे पंवार, अमरबाई राठौर, शहमति बाई हाडा, लखाबाई, जसोबाई चौहान और 6 पत्निया।
संतान Son of Maharana Pratap – अमर सिंह, भगवान दास और 17 पुत्र
जन्म – 9 मे, 1540
जन्मस्थान – कुम्भलगढ़ दुर्ग
पिता – राणा उदय सिंह
माता – महाराणी जयवंता कँवर
विवाह Wives of Maharana Pratap – उन्होंने 11 शादियाँ की थी – महारानी अजब्धे पंवार, अमरबाई राठौर, शहमति बाई हाडा, लखाबाई, जसोबाई चौहान और 6 पत्निया।
संतान Son of Maharana Pratap – अमर सिंह, भगवान दास और 17 पुत्र
बचपन से ही महाराणा प्रताप साहसी, वीर, स्वाभिमानी एवं स्वतंत्रताप्रिय थे। सन 1572 में मेवाड़ के सिंहासन पर बैठते ही उन्हें अभूतपूर्व संकोटो का सामना करना पड़ा, मगर धैर्य और साहस के साथ उन्होंने हर विपत्ति का सामना किया। मुगलों की विराट सेना से हल्दी घाटी में उनका भरी युद्ध हुआ। वहा उन्होंने जो पराक्रम दिखाया, वह भारतीय इतिहास में अद्वितीय है।
उन्होंने अपने पूर्वजों की मान – मर्यादा की रक्षा की और प्रण किया की जब तक अपने राज्य को मुक्त नहीं करवा लेंगे, तब तक राज्य – सुख का उपभोग नहीं करेंगे। तब से वह भूमी पर सोने लगे, वह अरावली के जंगलो में कष्ट सहते हुए भटकते रहे, परन्तु उन्होंने मुग़ल सम्राट की अधीनता स्वीकार नहीं की। उन्होंने अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए अपना जीवन अर्पण कर दिया।
महाराणा प्रताप ने वीरता का जो आदर्श प्रस्तुत किया, वह अद्वितीय है। उन्होंने जिन परिस्थितियों में संघर्ष किया, वे वास्तव में जटिल थी, पर उन्होंने हार नहीं मानी। यदि राजपूतो को भारतीय इतिहास में सम्मानपूर्ण स्थान मिल सका तो इसका श्रेय मुख्यत: राणा प्रताप को ही जाता है।महाराणा प्रताप ने अपनी मातृभूमि को न तो परतंत्र होने दिया न ही कलंकित। विशाल मुगल साम्राज्य की सेनाओ को उन्होंने लोहे के चने चबाने पर विवश कर दिया था। मुगल सम्राट अकबर उनके राज्य को जीतकर अपने साम्राज्य में मिलाना चाहते थे, किन्तु राणा प्रताप ने ऐसा नहीं होने दिया और आजीवन संघर्ष किया।
मुग़ल साम्राज्य का सूर्य तो डूब गया, किन्तु राणा प्रताप की गौरवगाथा आज भी गायी जाती है। कर्नल टॉड सहित कई विदेशी इतिहासकारो ने उनके स्वाभिमान की प्रशंसा की है। कहा जाता है की राणा के देहांत की खबर पाकर स्वयं अकबर की आखें डबडबा आयी थीं।
महाराणा प्रताप भारतीय इतिहास के एक अत्यंत गौरवशाली पात्र है। उनके त्याग, शौर्य और राष्ट्रभक्ति की तुलना किसी से नहीं की जा सकती। वह आज भारत में शौर्य, साहस और स्वाभिमान का प्रतीक बन गये है।
मृत्यु (Death) – 57 साल की उम्र में वह स्वर्ग सिधार गये।
Maharana Pratap Horse : Chetak Horse
चेतक की विरता पर –
“रण बीच चोकड़ी भर-भर कर चेतक बन गया निराला था
राणाप्रताप के घोड़े से पड़ गया हवा का पाला था,
जो तनिक हवा से बाग़ हिली लेकर सवार उड़ जाता था
राणा की पुतली फिरी नहीं,तब तक चेतक मुड जाता था।”
Om Banna life story
Om Banna – ओम बन्ना (जिन्हें श्री ओम बना और बुलेट बाबा भी कहा जाता है) एक तीर्थ स्थान है जो भारत के जोधपुर के नजदीक पाली जिले में स्थापित है. यह तीर्थ स्थान पाली से 20 किलोमीटर (12 मी.) दूर और जोधपुर से 50 किलोमीटर (31 मी.) की दुरी पर स्थित है, पाली-जोधपुर हाईवे से जाते समय यह तीर्थ स्थान चोटिला ग्राम के नजदीक आता है.

मोटरसाइकिल टेकते है मत्था (बुलेट बाबा)- Om Banna Story In Hindi
वहा एक मोटरसाइकिल 350 CC रॉयल एनफील्ड बुलेट भी है. इस मंदिर को बनाने की योजना हावड़ा में रहने वाले अनुतोष बनर्जी ने दी थी. हज़ारो लोग रोज़ अपनी सुरक्षित यात्रा की प्रार्थना करने के लिये आते है.

ओम बन्ना का इतिहास – Om Banna Chotila History
2 दिसंबर 1988 को ओम बन्ना (साधारणतः ओम सिंह राठौर के नाम से जाने जाते थे) पाली के नजदीकी शहर बांगड़ी से चोटिला की यात्रा कर रहे थे, तभी उन्होंने मोटरसाइकिल से अपना नियंत्रण खो दिया और एक पेड़ से टकरा गये : इस हादसे में ओम बन्ना मारे गये थे और उनकी मोटरसाइकिल भी वहा खाई में गिर गयी थी. हादसा होने के अगली सुबह स्थानिक पुलिस ने वह मोटरसाइकिल पुलिस स्टेशन ले गये. लेकिन अगले दिन वह मोटरसाइकिल स्टेशन से गायब हो गयी थी और वापिस जहा हादसा हुआ वही पायी गयी. पुलिस ने दोबारा मोटरसाइकिल को हिरासत में लिया और उसमे का पूरा पेट्रोल निकालकर उसे चैन से बांधकर रखा गया. इतने प्रयत्नों के बावजूद अगली सुबह वह मोटरसाइकिल वापिस स्टेशन से गायब हो गयी और दोबारा हादसे की जगह पर पायी गयी. वहा के आदमियो का कहना था की मोटरसाइकिल को वापिस उसी खाई में डाल देना चाहिये. क्योकि पुलिस द्वारा की गयी हर कोशिश नाकामयाब होती रही, पुलिस जब कभी भी उस मोटरसाइकिल को स्टेशन लाती तब अगली सुबह अचानक वह मोटरसाइकिल हादसे वाली जगह पायी जाती.
यह चमत्कार देखने के लिये स्थानिक लोग उस मोटरसाइकिल को देखने आया करते थे और जल्द ही उन्होंने उस “बुलेट बाइक” की पूजा करना भी शुरू कर दी. चमत्कार की यह कहानी जल्द ही आस-पास के गाँवो में फैलने लगी और बाद में उस जगह पर मोटरसाइकिल का मंदिर भी बनवाया गया. यह मंदिर “बुलेट बाबा मंदिर” के नाम से जाना जाता है और ऐसा कहा जाता है की यहाँ प्रार्थना करने से यात्रा सुरक्षित रहती है.
Saturday, August 19, 2017
Rajasthani song Lyrics :- 💥बाट ब्याव की💥
Lyrics :- 💥बाट ब्याव की💥
बाट ब्याव की भाळू, म्हारो ब्याव कड़े करवाओला।।
बिस पार तो ह्यूगो ,पछ के बिन पर्णिया मारवोला।।
रूखो सुखों देख लियो हरियाली कदे दिखाओला, हरियाली कदे दिखाओला , म्हारो ब्याव कदे करवाओला।।
Rap:-
के के के में थाक्यो , म्हारो बाप सुने ना म्हारी।।
रे सगळा छोरा पर्णीया ,छोरियाँ भी पर्णी सारी।।
जिंदगी लूण सी खारी , एक एक दिन पड़ रियो भारी, इतनी बेचैनी होगी, के नींद म्हणे ना आरही।।
रे सगळा घूमे लुगाई साथै , में घुमु अकेलो, देख दूजा ने लारा टपके ,गाँव बुलावे गैलो।।
कोई तो लादो शॉपिंग वाली, में पकड़ूंगो थैलो।।
रे एक पुटरी छोरी ल्यादो बीने दिखादियु मेलों।।
पंडित के घर थे जाओ, चोखो मुहर्त कड़ाओ।।
पंडित के घर थे जाओ, चोखो मुहर्त कड़ाओ।।
देर घणी अब हुगी झट पट थे म्हणे पारणाओ।।
बाट ब्याव की भाळू, म्हारो ब्याव कड़े करवाओला।।
बिस पार तो ह्यूगो ,पछ के बिन पर्णिया मारवोला।।
रूखो सुखों देख लियो हरियाली कदे दिखाओला, हरियाली कदे दिखाओला , म्हारो ब्याव कदे करवाओला।।
Rap:-
बापू ब्याव मांडले म्हारो, तू गाँव सजा ले सारो, बात म्हारी तू मानेगा तो के बिगड़ेगा थारो।।
दूजा के आयी लुगाई वे तो बणग्या घर जंवाई, रे होले होले करके वे टाबर फ़ौज बनाई।।
पर म्हणे ना बेरो हाल तक ,कद होगी म्हारी सगाई,कद होगी म्हारी सगाई,कद होगी म्हारी सगाई।।
गुड्डा गुड्डी का मेल बणिया बचपन में ए था खेल घाना।।
पर म्हारी जिंदगी खाली ना दुःख सुख पूछन वाली।।
रे कठे स्यु लाऊ शाली , जद ना म्हारे घरवाली।।
किस्मत ऐसी हो काली, तो कीकर बजाऊ थाली , तो कीकर बजाऊ थाली , तो कीकर बजाऊ थाली।।।
घोड़ी म्हणे चढ़ाओ, बैंड बाजो घरे बुलाओ।।
घोड़ी म्हणे चढ़ाओ बैंड बाजो घरे बुलाओ।।
भुआ फूफा जीजा ने बुला के ब्याव म्हारो करवाओ।।
बाट ब्याव की भाळू, म्हारो ब्याव कड़े करवाओला।।
बिस पार तो ह्यूगो ,पछ के बिन पर्णिया मारवोला।।
रूखो सुखों देख लियो हरियाली कदे दिखाओला, हरियाली कदे दिखाओला , म्हारो ब्याव कदे करवाओला।।
बाट ब्याव की भाळू, म्हारो ब्याव कदे करवाओला, ब्याव कड़े करवाओ बापू म्हणे कड़े पर्णाओला, पैर पडू में थारे बापू म्हणे कदे पर्णाओला, चोखी बींदणी लाओला, पोता पोती,
थे कदे खिलाओला।।
उ उ उ उ आ आ आ।।।।।।।।
बाट ब्याव की भाळू, म्हारो ब्याव कड़े करवाओला।।
बिस पार तो ह्यूगो ,पछ के बिन पर्णिया मारवोला।।
रूखो सुखों देख लियो हरियाली कदे दिखाओला, हरियाली कदे दिखाओला , म्हारो ब्याव कदे करवाओला।।
Rap:-
के के के में थाक्यो , म्हारो बाप सुने ना म्हारी।।
रे सगळा छोरा पर्णीया ,छोरियाँ भी पर्णी सारी।।
जिंदगी लूण सी खारी , एक एक दिन पड़ रियो भारी, इतनी बेचैनी होगी, के नींद म्हणे ना आरही।।
रे सगळा घूमे लुगाई साथै , में घुमु अकेलो, देख दूजा ने लारा टपके ,गाँव बुलावे गैलो।।
कोई तो लादो शॉपिंग वाली, में पकड़ूंगो थैलो।।
रे एक पुटरी छोरी ल्यादो बीने दिखादियु मेलों।।
पंडित के घर थे जाओ, चोखो मुहर्त कड़ाओ।।
पंडित के घर थे जाओ, चोखो मुहर्त कड़ाओ।।
देर घणी अब हुगी झट पट थे म्हणे पारणाओ।।
बाट ब्याव की भाळू, म्हारो ब्याव कड़े करवाओला।।
बिस पार तो ह्यूगो ,पछ के बिन पर्णिया मारवोला।।
रूखो सुखों देख लियो हरियाली कदे दिखाओला, हरियाली कदे दिखाओला , म्हारो ब्याव कदे करवाओला।।
Rap:-
बापू ब्याव मांडले म्हारो, तू गाँव सजा ले सारो, बात म्हारी तू मानेगा तो के बिगड़ेगा थारो।।
दूजा के आयी लुगाई वे तो बणग्या घर जंवाई, रे होले होले करके वे टाबर फ़ौज बनाई।।
पर म्हणे ना बेरो हाल तक ,कद होगी म्हारी सगाई,कद होगी म्हारी सगाई,कद होगी म्हारी सगाई।।
गुड्डा गुड्डी का मेल बणिया बचपन में ए था खेल घाना।।
पर म्हारी जिंदगी खाली ना दुःख सुख पूछन वाली।।
रे कठे स्यु लाऊ शाली , जद ना म्हारे घरवाली।।
किस्मत ऐसी हो काली, तो कीकर बजाऊ थाली , तो कीकर बजाऊ थाली , तो कीकर बजाऊ थाली।।।
घोड़ी म्हणे चढ़ाओ, बैंड बाजो घरे बुलाओ।।
घोड़ी म्हणे चढ़ाओ बैंड बाजो घरे बुलाओ।।
भुआ फूफा जीजा ने बुला के ब्याव म्हारो करवाओ।।
बाट ब्याव की भाळू, म्हारो ब्याव कड़े करवाओला।।
बिस पार तो ह्यूगो ,पछ के बिन पर्णिया मारवोला।।
रूखो सुखों देख लियो हरियाली कदे दिखाओला, हरियाली कदे दिखाओला , म्हारो ब्याव कदे करवाओला।।
बाट ब्याव की भाळू, म्हारो ब्याव कदे करवाओला, ब्याव कड़े करवाओ बापू म्हणे कड़े पर्णाओला, पैर पडू में थारे बापू म्हणे कदे पर्णाओला, चोखी बींदणी लाओला, पोता पोती,
थे कदे खिलाओला।।
उ उ उ उ आ आ आ।।।।।।।।
"Ek Vanjari Jhulana Lyrics"
"Ek Vanjari Jhulana Lyrics"
ek vanjari jhulana jhulti' ti
mari ambemaa na jhulana jhulti' ti
maa e pehle pagathiye pag mukyo
mani pani samana neer mori maat
vanjari jhulana jhulti' ti
maa e bije pagathiye pag mukyo
mana ghutan samana neer mori maat
vanjari jhulana jhulti' ti
ek vanjari..
maa e trije pagathiye pag mukyo
mana dhichan samana neer mori maat
vanjari jhulana jhulti' ti
ek vanjanri..
maa e chothe pagathiye pag mukyo
mana sathad samana neer mori maat
vanjari jhulana jhulti' ti
ek vanjari..
maa e panchme pagathiye pag mukyo
mani ked samana neer mori maat
vanjari jhulana jhulti' ti
ek vanjari..
maa e chhathe pagathiye pag mukyo
maani chaati samana neer mori maat
vanjari jhulana jhulti' ti
ek vanjari..
maa e saatme pagathiye pag mukyo
mana gala samana neer mori maat
vanjari jhulana jhulti' ti
ek vanjari..
maa e aathme pagathiye pag mukyo
mana kapad samana neer mori maat
vanjari jhulana jhulti' ti
ek vanjari..
maa e navme pagathiye pag mukyo
mana matha samana neer mori maat
vanjari jhulana jhulti' ti
ek vanjari..
"એક વણઝારી ઝૂલણાં"
એક વણઝારી ઝૂલણાં ઝૂલતી’તી,
મારી અંબેમાંના ઝૂલણાં ઝૂલતી’તી.
માએ પહેલે પગથીયે પગ મૂક્યો,
માની પાની સમાણાં નીર મોરી માત;
વણઝારી ઝૂલણાં ઝૂલતી’તી.
માએ બીજે પગથીયે પગ મૂક્યો,
માનાં ઘૂંટણ સમાણાં નીર મોરી માત;
વણઝારી ઝૂલણાં ઝૂલતી’તી.
એક વણઝારી…
માએ ત્રીજે પગથીયે પગ મૂક્યો
માનાં ઢીંચણ સમાણાં નીર મોરી માત;
વણઝારી ઝૂલણાં ઝૂલતી’તી.
એક વણઝારી…
માએ ચોથે પગથીયે પગ મૂક્યો,
માના સાથળ સમાણાં નીર મોરી માત;
વણઝારી ઝૂલણાં ઝૂલતી’તી.
એક વણઝારી…
માએ પાંચમે પગથીયે પગ મૂક્યો,
માની કેડ સમાણાં નીર મોરી માત;
વણઝારી ઝૂલણાં ઝૂલતી’તી.
એક વણઝારી…
માએ છઠ્ઠે પગથીયે પગ મૂક્યો,
માની છાતી સમાણાં નીર મોરી માત;
વણઝારી ઝૂલણાં ઝૂલતી’તી.
એક વણઝારી…
માએ સાતમે પગથીયે પગ મૂક્યો,
માનાં ગળાં સમાણાં નીર મોરી માત;
વણઝારી ઝૂલણાં ઝૂલતી’તી.
એક વણઝારી…
માએ આઠમે પગથીયે પગ મૂક્યો,
માનાં કપાળ સમાણાં નીર મોરી માત;
વણઝારી ઝૂલણાં ઝૂલતી’તી.
એક વણઝારી…
માએ નવમે પગથીયે પગ મૂક્યો,
માનાં માથાં સમાણાં નીર મોરી માત;
વણઝારી ઝૂલણાં ઝૂલતી’તી.
એક વણઝારી…
ek vanjari jhulana jhulti' ti
mari ambemaa na jhulana jhulti' ti
maa e pehle pagathiye pag mukyo
mani pani samana neer mori maat
vanjari jhulana jhulti' ti
maa e bije pagathiye pag mukyo
mana ghutan samana neer mori maat
vanjari jhulana jhulti' ti
ek vanjari..
maa e trije pagathiye pag mukyo
mana dhichan samana neer mori maat
vanjari jhulana jhulti' ti
ek vanjanri..
maa e chothe pagathiye pag mukyo
mana sathad samana neer mori maat
vanjari jhulana jhulti' ti
ek vanjari..
maa e panchme pagathiye pag mukyo
mani ked samana neer mori maat
vanjari jhulana jhulti' ti
ek vanjari..
maa e chhathe pagathiye pag mukyo
maani chaati samana neer mori maat
vanjari jhulana jhulti' ti
ek vanjari..
maa e saatme pagathiye pag mukyo
mana gala samana neer mori maat
vanjari jhulana jhulti' ti
ek vanjari..
maa e aathme pagathiye pag mukyo
mana kapad samana neer mori maat
vanjari jhulana jhulti' ti
ek vanjari..
maa e navme pagathiye pag mukyo
mana matha samana neer mori maat
vanjari jhulana jhulti' ti
ek vanjari..
"એક વણઝારી ઝૂલણાં"
એક વણઝારી ઝૂલણાં ઝૂલતી’તી,
મારી અંબેમાંના ઝૂલણાં ઝૂલતી’તી.
માએ પહેલે પગથીયે પગ મૂક્યો,
માની પાની સમાણાં નીર મોરી માત;
વણઝારી ઝૂલણાં ઝૂલતી’તી.
માએ બીજે પગથીયે પગ મૂક્યો,
માનાં ઘૂંટણ સમાણાં નીર મોરી માત;
વણઝારી ઝૂલણાં ઝૂલતી’તી.
એક વણઝારી…
માએ ત્રીજે પગથીયે પગ મૂક્યો
માનાં ઢીંચણ સમાણાં નીર મોરી માત;
વણઝારી ઝૂલણાં ઝૂલતી’તી.
એક વણઝારી…
માએ ચોથે પગથીયે પગ મૂક્યો,
માના સાથળ સમાણાં નીર મોરી માત;
વણઝારી ઝૂલણાં ઝૂલતી’તી.
એક વણઝારી…
માએ પાંચમે પગથીયે પગ મૂક્યો,
માની કેડ સમાણાં નીર મોરી માત;
વણઝારી ઝૂલણાં ઝૂલતી’તી.
એક વણઝારી…
માએ છઠ્ઠે પગથીયે પગ મૂક્યો,
માની છાતી સમાણાં નીર મોરી માત;
વણઝારી ઝૂલણાં ઝૂલતી’તી.
એક વણઝારી…
માએ સાતમે પગથીયે પગ મૂક્યો,
માનાં ગળાં સમાણાં નીર મોરી માત;
વણઝારી ઝૂલણાં ઝૂલતી’તી.
એક વણઝારી…
માએ આઠમે પગથીયે પગ મૂક્યો,
માનાં કપાળ સમાણાં નીર મોરી માત;
વણઝારી ઝૂલણાં ઝૂલતી’તી.
એક વણઝારી…
માએ નવમે પગથીયે પગ મૂક્યો,
માનાં માથાં સમાણાં નીર મોરી માત;
વણઝારી ઝૂલણાં ઝૂલતી’તી.
એક વણઝારી…
The Jio Phone मात्र 500 रूपये में मिलेगा तो कोई 1000 और कोई इससे ज्यादा.
Hi Friends, जैसा की आप सभी जानते हैं कि 21 जुलाई 2017 को जिओ ने अपना फीचर फ़ोन The Jio Phone को लांच कर दिया है. तो अब आपके मन The Jio Phone से संबंधित बहुत सारे सवाल होंगे.आपको बता दें की रिलायंस जिओ ने अपना सिम पहले ही निकालकर काफी प्रसिद्ध हो चूका है. और रिलायंस जिओ ने अपने फीचर फ़ोन की जानकारी पहले ही दे रखी थी जिससे आपको इसके बारे में तरह तरह के न्यूज़ मिलते थे. कोई कहता था कि The Jio Phone मात्र 500 रूपये में मिलेगा तो कोई 1000 और कोई इससे ज्यादा.
तो अब आपको बता दें की रिलायंस जिओ ने अपना ये फ़ोन Officially लांच कर दिया है और इसके बारे में सारी जानकारी दे दी है.
जिओ ने अपने फ़ोन के दाम के बारे में भी खुलासा किया है और ये भी बताया है कि ये खरीदने के लिए बाजार में कब से उपलब्ध होगा ?लेकिन थोड़ा ठहरिये....
जिओ ने इससे बचने के लिए इसके साथ एक नियम लागू किया है. यानि कि आपको वैसे तो The Jio Phone फ्री में मिलेगा लेकिन इसे लोग दुरुपयोग न करें, इसके लिए जिओ आपसे सिक्यूरिटी मनी के रूप में 1500 रूपये जमा लेगा.
लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि आपको ये फ़ोन 1500 रूपये में मिलेगा.
आपको बता दें की ये 1500 रूपये आपको जिओ के द्वारा 3 साल, यानि की 36 महीने बाद आपको वापस लौटा दिया जायेगा.
इस प्रकार आपका 1500 पुरे तीन साल के लिए जिओ के पास जमा रहेगा और इसके बाद ये 1500 वापस आपके पास आ जायेगा.
और आपका फ़ोन बिलकुल फ्री में आपके पास तीन साल के लिए उपलब्ध होगा.अब निश्चित रूप से आप ये जानना चाहते होंगे कि यदि हम ये फ़ोन खरीदते हैं तो क्या हमें इसके साथ कोई ऑफर भी मिलेगा ?
तो हाँ, आपको इसके साथ एक शानदार ऑफर मिलेगा जो कि मात्र 153 रूपये का है.
यानि कि आप मात्र 153 रूपये का रिचार्ज करवा के इस फ़ोन फ्री कालिंग, SMS तथा डाटा का उपयोग कर सकते हैं.
वैसे बताया ये जा रहा है कि आपको सिर्फ डाटा के लिए रिचार्ज करवाना है इस फ़ोन में और इसमें सारे कालिंग फीचर और SMS फ्री होगा लाइफटाइम के लिए.
आपको बता दें कि यदि आप इस फ़ोन में 309 रूपये बाला धन धना धन ऑफर का रिचार्ज करवाते हैं तो आप इसमें चलने वाले विडियो को अपने किसी भी टीवी पर प्रोजेक्ट कर सकते हैं.
मुकेश अम्बानी ने बताया है कि आप इस फ़ोन की सहायता से कम से कम 3 से 4 घंटे तक अपने टीवी पर विडियो देख सकते हैं.
इसके साथ ही जिओ के और भी कई ऑफर हैं जो इसके साथ काम करेगा. उन सभी की जानकारी इस पोस्ट में जल्दी ही अपडेट की जाएगी.वैसे तो जिओ फ़ोन के फीचर फ़ोन है, लेकिन जिओ इसे एक इंटेलीजेंट फ़ोन कहता है.
सीधे शब्दों में कहें तो The Jio Phone न तो साधारण फ़ोन है और न ही स्मार्टफोन. ये इन दोनों का बिच बाला है जिसकी अपनी अलग खूबियाँ हैं.
बताया ये जा रहा है कि आप इसमें रेडियो भी सुन सकते हैं और इसके साथ इसमें चलें बाले विडियो को अपने किसी भी TV पर ( साधारण या स्मार्ट टीवी ) चला सकते हैं.
आपको बता दें कि इसमें कुछ महत्वपूर्ण app जैसे कि Jio TV, Jio Music और भी कई एप्लीकेशन पहले से मौजूद होंगे. अर्थात आप इन सभी का मजा इस फ़ोन में भी उठा सकते हैं.
ये बहुत ही आसानी से आपको आवाज को पकड़ पाता है और उसके अनुसार काम कर पता है. यदि आप इस फ़ोन को किसी को कॉल करने के लिए बोलेंगे तो ये काफी आसानी से उन्हें कॉल लगा देगा.
उसी प्रकार अगर आपको कोई म्यूजिक या विडियो देखना है तो आप इसके लिए भी इसके voice फीचर का उपयोग कर सकते हैं.
इसके साथ ही इसमें एक खास फीचर दिया गया है जिसके अनुसार अगर आप इस फ़ोन 5 नंबर को लगातार दबाते हैं तो ये आपके किसी खास आदमी ( जिसे आप पहले से ऐड करके रखेंगे ) को मेसेज भेज कर आपका लोकेशन भेज देगा.
बताया ये भी गया है कि इसमें जल्द ही आपके लोकल पुलिस स्टेशन को भी ऐड किया जायेगा ताकि आप सुरक्षित रहें.
इसके साथ कुछ और भी खूबियाँ हैं जो इस पोस्ट में जल्दी ही अपडेट की जाएगी.
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